आधुनिकता और बदलते जमाने के बीच आज भी परम्पराओ का निर्वहन कर रहा है पंवरिया समाज   

वेद प्रकाश दुबे

देवरिया, टेलीग्रामहिन्दी। आधुनिकता और बदलते जमाने के बीच आज भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला में पंवरिया समाज अपने परम्पराओं का निर्वहन कर अपने यजमानों की खुशी तथा तरक्की हेतु ईश्वर से मनाते हैं। 
  लोक कलाकारों पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार मृत्युंजय गुप्त ने बताया कि ये पंवरिया समाज के लोग नवजात के जन्म पर लोगों के घर जाकर बधाई गाते है और नेग के लिए ठक ठेनी कर नवजात के माता, पिता,बुआ, भाभी, चाचा, बाबा आदि सभी से गीतों के माध्यम से नेग मांगते हैं।

उन्होंने बताया कि पंवरिया, नगारी, खलीफा, और किन्नरों के सूचना तंत्र बहुत मजबूत होता है।उनके यजमानी के इलाके में किसके घर पुत्र या पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई है,उन्हें समय से जानकारी मिल जाती है और वे अपने उस यजमानी वाले क्षेत्र के घर में पहुँच जाते हैं।वरिष्ठ पत्रकार श्री गुप्ता का कहना है कि लोग पंवरिया खुश कर भेजते हैं। इस समाज के लोग बधाई गीत गाने के बाद बच्चे को अपना आशीर्वाद देते हैं। इस दौरान उनके यजमान नेग, सीधा यानी राशन ,मीठा गहना,बर्तन जिससे वे खुश हो,देते हैं। उन्होंने बताया कि पंवरिया समाज की आबादी सिमित है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों किसी एक दो गाँव मे ही पंवरिया की आबादी है,जहाँ से उनके समाज द्वारा निर्धारित इलाके में वे जाते और बधाई गाते, नेग लेते हैं।

गुप्ता का कहना है कि इलाके का उलंघन उनकी अपने सामाजिक संरचना में दण्डनीय है। पंवरिया समाज का कोई दूसरे के इलाके में नहीं जाता है। अगर पंवरिया को पैसो की जरूतर होती है तो वे अपने इलाके के गांवों को अपने समाज मे गिरवी रख देते है,या आवश्यकता अनुसार उसे अपने समाज के लोगों को बेच भी देते हैं। इस समाज के लोग बधाई गीत गाने जाते समय उस यजमान के घर के निकट से ही उस परिवार के लिए ईश्वर और अपने इस्ट से नेक मनाते हुए दरवाजे तक पहुँचते है और यजमान के घर के बाहर बिस्तर लगा के बैठने के पश्चात सर्व प्रथम घर की मालकिन या बुआ आती हैं और सूप मे सीधा यानी चवक,दाल आटा आदि के साथ सिंदूर लेके आती हैं और उनके वाद्ययंत्र ढोलक को टिकती है और पूजा करती हैं ततपश्चात आशीर्वचनों के साथ बधाई ,सोहर आदि गा कर उनसे हार, हुमेल , अंगूठी, कान में नाक में हंडा, बटुला साड़ी कपड़ा, गाड़ी ,घोड़ा, जमीन जायदाद की मांग करते है, कभी कभी तो माताओ के शरीर के गहने भी उतरवा लेते हैं और माताएं खुशी खुशी उतार के दे भी देती हैं।

उन्होंने बताया कि पंवरिया लोग प्रायः तीन से चार या पांच पुरुष सदस्य रहते है, कमर से नीचे घाघरा व गले मे दुपट्टा हाथ मे छोटी सी सारंगी(जो अब बजती भी नही है,परन्तु पहले बजती थी)और घुंघरू लगा हुआ धनुसाकर  यंत्र का प्रयोग कर नृत्य करते हैं तथा
उन्हीं में एक कलाकार गीत गाता है फिर ढोलक बजाने वाले कलाकार के साथ सहयोगी उसके साथ गाते हैं।और अपना नेग ले के जाते है और नवजात के स्वास्थ्य, दीर्घायु होने कामना के साथ पुनः जल्दी आने के लिए पुनः पुत्रवति होने के लिए अपने इष्ट से सुप में आये हुए सीधा में के चावल बच्चे व परिवार के साथ घर के चारो दिशाओं में उछाल के सुख समृद्धि की मंगल कामना करते हुए प्रस्थान करते हैं। 

देवरिया देव भूमि का संक्षिप्त इतिहास

ऐसा माना जाता है कि देवरिया नाम, 'देवारण्य' / 'देवपुरिया' से उत्तपन्न हुआ आधिकारिक राजपत्रों के मुताबिक, जनपद का नाम 'देवरिया इसके मुख्यालय के नाम से लिया गया है और 'देवरिया शब्द का मतलब आमतौर पर एक ऐसा स्थान, जहां मंदिर हो . जनपद देवरिया वर्तमान क्षेत्र 'कोशल राज्य' का एक हिस्सा था। यह प्राचीन आर्य संस्कृति का मुख्य केंद्र रहा है। उत्तर में हिमालय से घिरा हुआ, दक्षिण में श्यादिका नदी, दक्षिण में पंचाल राज्य और पूर्व में मगध राज्य क्षेत्र से सम्बन्धित कई कहानिया है । खगोल- ऐतिहासिक जीवाश्म ('मूर्ति, सिक्का, ईंट, मंदिर, बुध गणित आदि) जनपद के बहुत से स्थान पे पाये गए है जो यह प्रदर्शित करते है कि एक विकसित और संगठित समाज लंबे समय पहले से था। जनपद का प्राचीन इतिहास रामायण काल से संबंधित है जब 'कोशल नरेश' भगवान राम ने अपने बड़े बेटे 'कुश को कुशावटी का राजा नियुक्त किया - जो आज कुशीनगर जनपद में है ।
देवरिया ब्रह्मर्षि देवरहा बाबा,भगवान दास गोंड़ बाबा राघव दास, आचार्य नरेन्द्र देव जैसे महापुरुषों की कर्मभूमि रहा है। देवरिया जिला मुख्य कस्बो में बरहज,भलुअनी,रुद्रपुर,सलेमपुर, भागलपुर,भटनी, गौरीबाजार में बटा हुआ है। इस जिला मुख्यालय से 15 कि0मी0 की दूरी पर खुखुन्‌दू है । यहॉ पर यक जैन मंदिर है जो प्राचीन है खुखुन्‌दू चौराहे से 2कि0मी0 पश्चिम मे एक गॉव छोटी रार है, यहॉ पर उद्देश्य सेवा समिति के प्रेसिड़ेंट का जन्म स्थल है ।इसी खुखुन्दू से लगभग 2 कि0मी0 दक्षिण में एक गाँव मरहवाँ है जो शमचौरासी घराना के प्रसिद्ध शास्त्रीय गयक डॉ प्रेमचंद्र कुशवाहा का जन्म स्थान है। डॉ कुशवाहा विश्वप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक उस्ताद सलामत अली खान साहब के बहुत ही प्रतिभाशाली शिष्य हैं,तथा भारत मद शमचौरासी घराने के प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। ख्याल,ठुमरी ,दादरा,गीत ,भजन,काफिया,सूफ़ियाना कलाम ,एवं लोकसंगीत के अनेकों प्रकार को गाने में दक्ष हैं।वर्तमान में डॉ कुशवाहा ,एसोसिएट प्रोफेसर ,संगीत गायन श्रीचित्रगुप्त पी जी कालेज मैपुरी में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।(स्त्रोत: जनपद देवरिया के आधिकारिक वेबसाइट तथा अन्य माध्यमों से)


 

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Author: Telegram Hindi