टेलीग्राम संवाद
शाहजहांपुर। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जनपद स्थित जलालाबाद कस्बे का नाम अब इतिहास बन गया है। केंद्र सरकार ने इसे बदलकर ‘परशुरामपुरी’ करने की अनुमति प्रदान की है। यह फैसला न सिर्फ प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक अस्मिता और धार्मिक गौरव का प्रतीक भी माना जा रहा है।
इस नाम परिवर्तन के पीछे वर्षों की मेहनत, संघर्ष और जिद है ब्राह्मण चेतना परिषद के प्रदेश अध्यक्ष विश्वदीप अवस्थी की। उन्होंने लगातार कई मंचों से यह आवाज़ बुलंद की कि जलालाबाद का नाम भगवान परशुराम से जुड़ा होना चाहिए। अवस्थी का मानना था कि “परिवर्तन केवल शब्दों का नहीं, बल्कि पहचान का है। परशुरामपुरी नाम से यह भूमि संस्कृति, श्रद्धा और आस्था का केंद्र बनेगी।”

जितिन प्रसाद का निर्णायक हस्तक्षेप
इस आंदोलन को निर्णायक मोड़ तब मिला, जब केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने इस विषय को गंभीरता से उठाया। वे लंबे समय से ब्राह्मण समाज की भावनाओं को समझते थे और उन्होंने केंद्र स्तर पर यह मुद्दा जोर-शोर से रखा। जितिन प्रसाद के अथक प्रयासों के बाद अंततः गृह मंत्री अमित शाह ने ‘जलालाबाद’ का नाम बदलकर ‘परशुरामपुरी’ करने की अनुमति प्रदान की। इस निर्णय के बाद क्षेत्र में हर्षोल्लास की लहर दौड़ गई।
परिषद की भूमिका और विश्वदीप अवस्थी की जिद
विश्वदीप अवस्थी ने इसे केवल नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि “आस्था का सम्मान” बताया। उन्होंने कहा,
“आज मेरा वर्षों का सपना पूरा हुआ है। यह विजय केवल मेरी नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जिसने इस संघर्ष में मेरा साथ दिया। भगवान परशुराम हमारी संस्कृति और शौर्य के प्रतीक हैं। अब शाहजहांपुर का यह कस्बा पूरे देश में ‘परशुरामपुरी’ के नाम से जाना जाएगा। ब्राह्मण चेतना परिषद के कार्यकर्ताओं ने इस अवसर पर ढोल-नगाड़ों के साथ भव्य जुलूस निकाला और मिठाई वितरण कर अपनी खुशी साझा की। जगह-जगह स्वागत द्वार सजाए गए और लोगों ने भगवान परशुराम के जयकारे लगाए।
स्थानीय जनता की प्रतिक्रिया
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह निर्णय ऐतिहासिक और प्रेरणादायी है। कई बुजुर्गों ने इसे “नई पीढ़ी के लिए सांस्कृतिक धरोहर” बताया। युवाओं ने कहा कि यह नाम उन्हें अपनी परंपरा से जोड़ने का काम करेगा।
दुकानदारों और व्यापारियों ने भी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि ‘परशुरामपुरी’ नाम से कस्बे की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर बनेगी और यह धार्मिक पर्यटन के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगा।
नाम परिवर्तन का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
विशेषज्ञों के अनुसार, नाम बदलना केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं होती, बल्कि यह समाज की सोच और आकांक्षाओं का दर्पण होता है। ‘परशुरामपुरी’ नाम से जुड़ा संदेश है कि यह भूमि अब शौर्य, त्याग और धार्मिक आस्था का प्रतीक बनेगी।धार्मिक विद्वानों का मानना है कि भगवान परशुराम की विरासत को संरक्षित करना और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना आवश्यक है। इस नामकरण से न सिर्फ शाहजहांपुर बल्कि पूरे प्रदेश में सांस्कृतिक चेतना का संचार होग


