नौटंकी की जीवंत परंपरा संग तीसरे दिन दर्शक हुए मंत्रमुग्ध
टेलीग्राम संवाद
बरेली। अर्बन हाट का प्रभावे ऑडिटोरियम रोशनी से नहाया हुआ है। मंच के बीचोबीच सजे झालरदार पर्दे जैसे ही धीरे–धीरे उठते हैं, तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठती है। ढोलक की तेज थाप और नगाड़ा की धमक कानों में पड़ते ही लगता है जैसे कोई गाँव का मेला अचानक शहर के हॉल में उतर आया हो।
“आए हैं देखन कहानी सुल्ताना डाकू की…!”
सूत्रधार की ऊँची, गूंजदार आवाज़ दर्शकों को भीतर तक खींच लेती है। मंच पर रोशनी का फैलाव और रंगीन परिधान पहने कलाकार जब ताल से ताल मिलाते हैं तो दर्शक अपनी कुर्सियों पर झूमने लगते हैं।
नौटंकी का मेला, शहर के बीच
तीसरे दिन श्रीराम सेंटर, नई दिल्ली की प्रस्तुति “डाकू सुल्ताना” ने बरेली नाट्य महोत्सव को नए शिखर पर पहुँचा दिया। दर्शकों को ऐसा अहसास हुआ जैसे वे किसी गाँव के चौपाल में बैठे हों और सामने नौटंकी का मेला सजा हो।

सुल्ताना के रूप में मंच पर आते ही भानु राजपूत की बुलंद आवाज़ पूरे हॉल में गूँज उठी—
“हम हैं सुल्ताना डाकू!
ना किसी हुकूमत से डरते हैं,
ना किसी ज़ालिम से झुकते हैं।”
तालियों की गड़गड़ाहट इतनी ज़ोरदार कि मानो छत तक थर्रा उठी हो।
कहानी की लय और मंचन की धड़कन
20वीं सदी के उस लोकनायक की गाथा, जो अंग्रेज़ी हुकूमत को लूटकर गरीबों में धन बाँट देता था—गीत, नृत्य और हास्य के बीच जब मंच पर बुनी जाती है तो दर्शक हर दृश्य को साँस थामकर देखते हैं।
फूल कुमार की भूमिका निभा रहीं काव्या बरनवाल का जब प्रेमगीत गूँजता है, तो माहौल अचानक कोमल हो जाता है।
“सुल्ताना, रे सुल्ताना…”
उनकी आवाज़ के सुर और पायल की छनक जैसे पूरे ऑडिटोरियम में फैल जाते हैं।
सूत्रधार प्रिया पाठक और देवांशी अरोड़ा कभी व्यंग्य भरी टिप्पणियों से दर्शकों को हँसी में डुबो देते हैं, तो कभी अपने गीतों से माहौल को गंभीर बना देते हैं।
संगीत जिसने जादू कर दिया
हारमोनियम पर रवि, नकारा पर उस्ताद छिद्दामल, ढोलक पर मास्टर विशाल और क्लेरिनेट पर उस्ताद रशीद खान—जैसे ही ताल–संगीत की संगत शुरू होती है, हॉल की हर दीवार गूंजने लगती है।
ढोलक की थाप के साथ दर्शकों की हथेलियाँ अपने आप तालियाँ बजाने लगती हैं। कई दर्शक खुद को रोक नहीं पाए और पाँव थिरकाने लगे।
निर्देशक की पकड़
पद्मश्री राम दयाल शर्मा का निर्देशन पूरे मंचन में साफ झलकता है। उन्होंने नाटक को उसी पारंपरिक शैली में रखा, जिसमें नौटंकी का रस छलकता है। ऊँचे संवाद, लंबी तान वाले गीत, नाचते कलाकार—सबकुछ वैसा ही जैसे किसी ग्रामीण मेले में होता था।
सह–निर्देशक सिकंदर कुमार की तकनीकी कसावट ने प्रस्तुति को आधुनिक मंच पर और प्रभावी बना दिया।
दर्शक: तालियाँ, ठहाके और मंत्रमुग्धता
मंच पर हर दृश्य के साथ दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ बदलती रहीं। हास्य के संवाद पर ठहाके, सुल्ताना के साहसी संवाद पर सीटियाँ, और भावुक गीत पर खामोशी—यानी पूरा ऑडिटोरियम नाटक की धड़कन के साथ साँस ले रहा था।


जब अंत में सुल्ताना की टोली मंच पर एक साथ गाती है,
“हम गरीबों के साथी हैं,
अन्याय के दुश्मन हैं,”
तो पूरा हॉल खड़े होकर तालियाँ बजाने लगा।


“डाकू सुल्ताना” ने बरेली नाट्य महोत्सव को ऐसा रंग दिया कि दर्शक खुद को महज़ दर्शक नहीं, बल्कि इस नौटंकी का हिस्सा महसूस करने लगे।
कह सकते हैं कि यह प्रस्तुति सिर्फ देखी नहीं गई, बल्कि जी गई—जैसे दर्शक वास्तव में उस जंगल में सुल्ताना के साथ मौजूद हों।
पढ़ते–पढ़ते भी अगर आपके कानों में ढोलक–नकारा की गूंज और आँखों में मंच की रोशनी चमक रही हो, तो यही “डाकू सुल्ताना” की असली जीत है।
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डाकू सुल्ताना कौन था?

20वीं सदी के शुरुआती दौर का मशहूर डाकू।
उत्तर प्रदेश के जंगलों में 300 डाकुओं की टोली के साथ सक्रिय।
गरीबों की मदद करता और अंग्रेजों के एजेंटों को लूटता था।
फूल कुमार से प्रेम उसकी कथा को और लोकप्रिय बना देता है।
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निर्देशक पद्मश्री राम दयाल शर्मा
- नौटंकी, स्वांग और रासलीला की परंपरा के जीवित दिग्गज।
- 5000 से अधिक प्रस्तुतियाँ कर चुके।
- 2014 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।
- लंदन के थिएटर रॉयल में हीर-रांझा के संगीतकार रहे।
सह-निर्देशक सिकंदर कुमार
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक।
रेपर्टरी कंपनी में छह वर्ष बतौर अभिनेता।
20 से अधिक प्रस्तुतियों का निर्देशन।
संजय उपाध्याय, उषा गांगुली जैसे दिग्गजों के साथ काम।

दर्शकों की प्रतिक्रिया और महोत्सव की चमक
पूरे हॉल में बार–बार तालियों की गड़गड़ाहट गूँजी। हास्य संवादों पर दर्शक ठहाके लगाते दिखे और गीतों में कई श्रोता खुद को लय मिलाने से नहीं रोक पाए। प्रस्तुति के बाद दर्शकों ने कहा कि इस तरह की नौटंकी उन्हें अपने गाँव–कस्बों के सांस्कृतिक मेले की याद दिलाती है।

कार्यक्रम में शहर के कई उद्यमी और सामाजिक हस्तियाँ मौजूद रहीं, जिनमें भावेश अग्रवाल, संदीप झावर, विभोर गोयल, शेखर अग्रवाल, गौरव भसीन, नितिन खंडेलवाल, शुभा भट भसीन, अशोक गोयल, राजू चौहान, लव तोमर, मोहित कुमार सिंह, माधुरी कश्यप, बृजेश तिवारी, प्रसनजीत बनर्जी और पंकज मौर्य प्रमुख रहे।



