आर.बी. लाल
टेलीग्राम संवाद, बरेली। की रंगमंचीय धरती पर जब अश्वथ भट्ट मंच पर दर्शकों से मुखातिब हुए तो लगा जैसे थिएटर और सिनेमा की दुनिया एक साथ सजीव हो उठी। राज़, हैदर, केसरी, मिशन मजनू और डिप्लोमेट जैसी फ़िल्मों में अपनी सशक्त भूमिकाओं से पहचान बनाने वाले भट्ट, बरेली रंगमंच महोत्सव के दौरान दर्शकों के बीच थे। उनसे हुई लंबी बातचीत में रंगमंच का संघर्ष, सिनेमा का अनुभव और नए कलाकारों के लिए संदेश – सब कुछ बेहद खुलकर सामने आया।
अश्वथ भट्ट ने सबसे पहले बरेली की रंगमंचीय संस्कृति की जमकर तारीफ़ की। उनका कहना था –
“बरेली का थिएटर जुझारू है। यहां के कलाकारों में जुनून है। लेकिन असली विकास तभी होगा जब सालभर ट्रेनिंग, वर्कशॉप्स और नाट्यशालाएं नियमित चलें।”

थिएटर – असली पाठशाला
बातचीत में बार-बार उन्होंने थिएटर की अहमियत पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा –
“आज जो भी बड़े कलाकार आप देखते हैं – नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी, सौरभ शुक्ला या पंकज त्रिपाठी – सभी थिएटर से निकले हैं। थिएटर कलाकार को गढ़ता है, उसे अनुशासन और मेहनत सिखाता है।”उनके मुताबिक नए युवाओं को चाहिए कि वे ट्रेनिंग लें, धैर्य रखें और सीखने की प्रक्रिया को लंबा सफ़र मानें।“डॉक्टर बनने में पाँच साल लगते हैं, इंजीनियर बनने में चार साल। तो कलाकार बनने में समय क्यों नहीं लगेगा? मेहनत करनी होगी, कोई शॉर्टकट नहीं है।”
ऑडियंस को भी चाहिए ट्रेनिंग
भट्ट ने दर्शकों की भूमिका को भी उतना ही अहम बताया जितना कलाकारों की। उनका कहना था –
“सिनेमा पर्दे पर होता है, लेकिन थिएटर लाइव आर्ट है। इसे तहज़ीब से देखना पड़ता है। मोबाइल बजना, फ्लैश मारना – यह सब धीरे-धीरे सुधरेगा। लेकिन ज़रूरी है कि स्कूलों में थिएटर क्लासेस हों ताकि आने वाली पीढ़ी थिएटर देखना और समझना सीख सके।”
टाइपकास्टिंग से जंग
इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पूछा गया कि उनकी ज़्यादातर फिल्में सरहदों और कश्मीर जैसे विषयों से क्यों जुड़ जाती हैं – तो उन्होंने स्पष्ट कहा –“बहुत सारी फिल्में मैंने छोड़ी हैं, क्योंकि मुझे बार-बार टाइपकास्ट किया जा रहा था। लेकिन मैंने अलग-अलग किरदार किए हैं – मंडली में मथुरा का रामलीला आर्टिस्ट, मेड इन इंडिया टाइटन में तमिल ब्राह्मण, रजनी की बारात में दरभंगा का पुलिसवाला। मैं अलग-अलग भाषाओं और पृष्ठभूमियों के रोल करता हूँ। लेकिन जो किरदार हिट हो जाते हैं, वही दर्शकों को ज़्यादा याद रहते हैं।”

इंडिपेंडेंट सिनेमा से जुड़ाव
भट्ट ने बताया कि उन्होंने केवल मुख्यधारा बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि कई इंडिपेंडेंट और रीजनल सिनेमा में भी काम किया है। उड़िया, बंगाली, पंजाबी, तमिल, मलयालम और कन्नड़ फ़िल्मों में वे नज़र आ चुके हैं।
“बड़ी फिल्में आसानी से स्क्रीन पा लेती हैं, छोटी फिल्मों को संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन मुझे गर्व है कि मैंने छोटे सिनेमा में भी अलग-अलग प्रयोग किए।”
युवाओं के लिए संदेश
अश्वथ भट्ट ने बेहद साफ़ शब्दों में कहा –“जो भी युवा कलाकार बनना चाहता है, उसे थिएटर से शुरुआत करनी चाहिए। ट्रेनिंग के बिना कुछ नहीं होता। मेहनत करो, धैर्य रखो और सीखने की ललक बनाए रखो। तभी आप बड़े कलाकार बन सकते हो।”
अश्वथ भट्ट: एक संक्षिप्त जीवनी
जन्म: 5 जुलाई 1975, कश्मीर
शिक्षा:राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी), नई दिल्ली
लंदन एकेडमी ऑफ़ म्यूज़िक एंड ड्रामेटिक आर्ट्स (LAMDA)
करियर की शुरुआत: रंगमंच से।

फ़िल्मों में प्रमुख काम:
राज़ी (2018) – मेजर सैयद
हैदर (2014) – लीआउट किरदार
केसरी (2019)
मिशन मजनू (2023) – जियाउल हक
डिप्लोमेट (2024) – मलिक
IB71 (2023)
मंडली, मेड इन इंडिया टाइटन, रजनी की बारात (आगामी)

थिएटर:
Actors’ Truth नाम से अपनी परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स कंपनी स्थापित की।
देश-विदेश में अनेक मंचन किए।
विशेषता: बहुभाषी और बहुमुखी अभिनेता, जिन्होंने हिंदी के अलावा पंजाबी, उड़िया, बंगाली, तमिल, मलयालम, कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया।
अश्वथ भट्ट का यह साक्षात्कार केवल एक अभिनेता की यात्रा नहीं बल्कि थिएटर और सिनेमा की गहराई को समझने का अवसर भी है। उनका संदेश साफ़ है –
👉 थिएटर असली पाठशाला है। मेहनत, ट्रेनिंग और धैर्य से ही कलाकार बनते हैं।
👉 ऑडियंस को भी थिएटर की तहज़ीब सीखनी होगी।
👉 और सबसे बड़ी बात – कलाकार को हर बार नए प्रयोग करने चाहिए।
बरेली जैसे शहर में रंगमंच की यह गूंज और अश्वथ भट्ट जैसे कलाकारों की मौजूदगी निश्चित ही आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी।




