ब्राह्मण समाज ने 51 किलो की माला, पटका और स्मृति चिन्ह भेंट कर जताया आभार
टेलीग्राम संवाद
शाहजहांपुर। प्रसाद भवन, शाहजहांपुर आज ब्राह्मण समाज की गौरवपूर्ण भावनाओं का साक्षी बना जब वर्षों पुरानी मांग — भगवान परशुराम जी की जन्मस्थली को आधिकारिक रूप से पर्यटन स्थल घोषित करने — की दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए ठोस कदमों पर खुशी और कृतज्ञता का माहौल देखने को मिला।

इस अवसर पर संयुक्त ब्राह्मण संगठन और जनपद के विभिन्न ब्राह्मण संगठनों के प्रतिनिधियों ने भारत सरकार के मंत्री माननीय जितिन प्रसाद का भव्य स्वागत किया। मंत्री जी को 51 किलो की विशाल माला, सम्मान का पटका, परशुराम जी का प्रतीक ‘फरसा’ और स्मृति चिन्ह भेंट कर आभार प्रकट किया गया।

ऐतिहासिक पहल: ‘परशुरामपुरी’ के नाम से होगी पहचान
ब्राह्मण समाज की बहुप्रतीक्षित मांग पर सरकार ने भगवान श्री परशुराम जी की जन्मस्थली को पर्यटन स्थल के रूप में चिह्नित कर सौंदर्यीकरण के कार्य तेज़ी से शुरू कर दिए हैं। इसके साथ ही केंद्र सरकार को जन्मस्थली का नाम “परशुरामपुरी” घोषित किए जाने का प्रस्ताव भी भेजा गया है, जिसने समाज में हर्ष का वातावरण उत्पन्न कर दिया है

मौजूद रहे
इस गरिमामयी अवसर पर अनेक ब्राह्मण संगठनों के वरिष्ठ पदाधिकारी और समाजसेवी उपस्थित रहे।
मुख्य रूप से:डॉ. विजय पाठक – प्रदेश अध्यक्ष, ब्राह्मण समाज संस्था,विश्वदीप अवस्थी – प्रदेश अध्यक्ष, ब्राह्मण चेतना परिषद,संजय मिश्रा – पूर्व विधान परिषद सदस्य,श्री दत्त शुक्ला – ब्लॉक प्रमुख कांट,केशव मिश्रा – जिलाध्यक्ष
केके शुक्ला, महेश मिश्रा, अवधेश दीक्षित, कौशल मिश्रा, हरिशरण बाजपेई, सुशील दीक्षित, चिरंजीव शुक्ला, आलोक मिश्रा, बिरजू मिश्रा, विनय शर्मा सहित अनेक गणमान्य उपस्थित रहे।

मंत्री जितिन प्रसाद ने कहा, “यह मेरे लिए गौरव और धर्म का विषय है कि भगवान परशुराम जी की जन्मस्थली को उसका यथोचित सम्मान मिले। समाज की भावनाएं मेरे लिए सर्वोपरि हैं। पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने से यह स्थान राष्ट्रव्यापी श्रद्धा और सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बनेगा।”

समाज में उत्साह का वातावरण
इस घोषणा के बाद ब्राह्मण समाज में विशेष उत्साह देखा गया। युवा वर्ग से लेकर वरिष्ठ जन तक सभी ने इस ऐतिहासिक पहल को सांस्कृतिक जागरण और सामाजिक सम्मान से जोड़कर देखा।
ब्राह्मण संगठनों ने केंद्र सरकार और विशेष रूप से जितिन प्रसाद जी के इस प्रयास को “धर्म और संस्कृति की पुनर्स्थापना की दिशा में ठोस कदम” बताया।




