मध्य प्रदेश के रतलाम शहर में बनाई जा रही है सतगुरु ओशो की प्रतिमा

फ्लाइट के माध्यम से अमेरिका के टेक्सास शहर में स्थापित करने को भेजी जायेगी ओशो की प्रतिमा
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अमेरिका के टेक्सास शहर मे स्थापित की जायेगी गुरुओं के गुरु ओशो की प्रतिमा
शीघ्र ही श्री रजनीश ध्यान मंदिर, सोनीपत (ओशो फ्रेग्रेंस आश्रम, सोनीपत) में भी स्थापित की जायेगी ओशो की प्रतिमा
पवन सचदेवा
टेलीग्राम संवाद, सोनीपत । श्री रजनीश ध्यान मन्दिर, सोनीपत (ओशो फ्रेग्रेंस आश्रम), मे ओशो अनुज शैलेंद्र सरस्वती ने टेलीग्राम संवाद को आज हुई विशेष बातचीत में बताया कि उनके संज्ञान में यह समाचार है की मध्य प्रदेश के रतलाम शहर में उनके बड़े भाई व सतगुरु ओशो की प्रतिमा तैयार की जा रही है, जिसको तैयार होने के बाद अमेरिका के डेनिसन टेक्सास में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद भारत में भी ओशो के सभी ध्यान केंद्रों पर भी प्रतिमा लगाए जाने की योजना है। उन्होंने बताया ओशो की सन्यासिंन मां प्रेम महिमा इस कार्य को करवा रही हैं। रतलाम शहर के त्रिवेदी आर्ट्स द्वारा पिछले 15 दिनों से ओशो की यह प्रतिमा बनाई जा रही है। इस प्रतिमा को तैयार होने के बाद इंदौर से फ्लाइट के माध्यम से अमेरिका के डेनिसन टेक्सास भेजे जाने की योजना है।

उन्होंने बताया कि ओशो की मूर्ति या उनके हर फोटो में उनके नेत्रों से ही आज भी जीवंतता का एहसास होता है। इस प्रतिमा की यह विशेषता होगी कि इसे किसी भी एंगल से देखने पर ऐसा प्रतीत होगा कि यह आपको ही देख रही है। प्रतिमा में उनके चेहरे पर स्थित छोटे-छोटे रूम कूप एवं रिंकल्स को भी दर्शाया जा जायेगा । यह सब भक्तों को ओशो की प्रतिमा की ओर आकर्षित करेगा। उन्होंने बताया कि अमेरिका के स्वामी प्रेम मैत्रेय यह चाहते हैं कि गुरु पूर्णिमा महोत्सव पर गुरु पूजन के समय इस प्रतिमा का अनावरण हो ताकि इस महोत्सव में विभिन्न देशों से आने वाले शिष्यों को ओशो की जीवंतता का एहसास हो सके।

उन्होंने बताया कि प्रतिमा के मॉडल को क्ले और सिलिकॉन का उपयोग करके एक सांचा तैयार किया गया है। इसके बाद मार्बल पाउडर, एपॉक्सी रेजिन से प्रतिमा को तैयार किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि ओशो की मूर्ति (प्रतिमा) की स्थापना श्री रजनीश ध्यान मंदिर, सोनीपत में भी होगी जिससे उनके शिष्यों को एक गहरी आंतरिक श्रद्धा और मौन की अभिव्यक्ति होगी। उन्होंने आगे कहा कि ओशो स्वयं मूर्तियों और पूजापाठ से परे थे, ओशो ने बार-बार कहा कि उनका उद्देश्य व्यक्ति को स्वयं की खोज की ओर ले जाना है, न कि किसी बाहरी प्रतीक की पूजा की ओर, परंतु ठीक बुद्ध की तरह, ओशो भी केवल एक शरीर नहीं थे, वे एक चेतना, एक प्रेमपूर्ण मौन, एक गूंजते हुए सत्य हैं।

इस मूर्ति की स्थापना ओशो के विचारों और ऊर्जा को स्थूल रूप में अनुभव करने का एक माध्यम बनेगी। यह उन साधकों के लिए एक ध्यान का केंद्र होगी जो ओशो की वाणी और मौन को अपने भीतर जगाना चाहते हैं। यह कोई पूजा का प्रतीक नहीं, बल्कि स्मरण का स्तंभ है, याद दिलाने वाला होगा कि भीतर ही सत्य का द्वार है।

सोनीपत का यह ध्यान मंदिर एक आध्यात्मिक धारा को पुनः जीवंत कर रहा है, जहां ओशो की मूर्ति माध्यम बनेगी, मौन से जुड़ने, भीतर उतरने, और स्वयं को पहचानने का। यह मूर्ति केवल एक आकृति ही नहीं, बल्कि एक निमंत्रण भी होगी, जीवन को और गहराई से जीने का, जागने का, और प्रेम में डूब जाने का।