रामनवमी पर भगवान् राम की महिमा विषय पर ओशो अनुज स्वामी शैलेंद्र सरस्वती के सत्संग का आयोजन किया

पवन सचदेवा


टेलीग्राम संवाद, मुंबई।रामनवमी के पावन पर्व पर पटेल समाज हॉल, हनुमान टेकरी, दहिसर (पूर्व), मुंबई में ओशो अनुज के सत्संग का आयोजन किया गया । पूरी तरह से ओशो प्रेमियों से भरे इस सभागार में उपस्थितजन, ओशो प्रेमियों ने शांति और आनंद के साथ गीत, संगीत, ध्यान, ओशो प्रवचन तथा सत्संग में सहभागिता की। यह कार्यक्रम कोविड काल के पश्चात मुंबई महानगर में आयोजित ओशो प्रेमियों का बड़ा कार्यक्रम था।

इस कार्यक्रम में सत्संग का विषय : नहिं राम बिन ठांव था । संतों के इस बहुमूल्य वचन पर ओशो की अनूठी दृष्टि की व्याख्या स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती और मां अमृत प्रिया ने की। लगभग दो घंटे तक चले इस गहन व्याख्यान में श्रोतागण मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे। ओशो अनुज स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती और उनकी पत्नी माँ प्रिया ने ओशो की उन सात पुस्तकों का उल्लेख किया जिनके शीर्षक में राम का नाम आता है

ओशो की दृष्टि में भगवान राम की महिमा को समझाते हुए मां प्रिया ने गीता के अध्याय 10, श्लोक 31 का उल्लेख किया:-


पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।

भगवान कृष्ण द्वारा शस्त्रधारियों में मैं राम हूं कहने का गूढ़ अर्थ ओशो ने इस रूप में समझाया कि बाहरी शक्ति का संबंध आंतरिक शुद्धता से होना चाहिए। राम का व्यक्तित्व यही संदेश देता है कि शक्ति का उपयोग वही कर सकता है, जो भीतर से शांत और दृढ़ हो। यदि बुद्ध और महावीर जैसे अच्छे लोग शक्ति से विमुख होंगे, तो निश्चय ही बुरे लोग सत्ता पर हावी हो जाएंगे।


मां प्रिया जी ने आगे कहा: राम का करुणा और प्रेम से भरा व्यक्तित्व जब शस्त्र धारण करता है, तो यह विरोधाभास नहीं, बल्कि शक्ति के सही उपयोग का प्रतीक बन जाता है। रावण का शस्त्रधारण हिंसा का प्रतीक है, जबकि राम का धनुष-बाण न्याय का। शक्ति भ्रष्ट नहीं करती, बल्कि व्यक्ति के स्वभाव को प्रकट करती है। राम के पास शक्ति थी, परंतु उन्होंने उसका दुरुपयोग नहीं किया—जबकि रावण ने अपनी शक्ति को अत्याचार के लिए प्रयोग किया।
राम की असली विजय यह है कि वे रावण से युद्ध करते हुए भी रावण जैसे नहीं बने। चरित्र की असली परीक्षा तब होती है जब व्यक्ति के हाथ में ताकत होती है। अक्सर देखा गया है कि शक्ति भ्रष्ट करती है, क्योंकि भ्रष्ट लोग ही राजनीति में उत्सुक होते हैं। परंतु भगवान राम इस धारणा के अपवाद हैं—वे राजसिंहासन पर बैठकर भी अपनी मर्यादा में रहते हैं।
स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने बताया कि ‘राम’ शब्द का आध्यात्मिक अर्थ है—वह जो रोम-रोम में बसता है, अर्थात् अनहद नाद। ओशो की उपरोक्त सात पुस्तकों के शीर्षकों में इसी अनाहत ध्वनि, प्रणव, ओंकार की ओर संकेत है।
प्रवचन के उपरांत मां प्रिया ने कीर्तन और ध्यान का प्रयोग करवाया, जिससे साधकों ने अपने भीतर गूंज रहे परमात्मा के संगीत को अनुभव किया। स्वामी जी ने कहा कि जो मित्र आज कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पाए, वे निराश न हों—ओशो फ्रेगरेंस के नियमित ऑनलाइन ध्यान शिविरों में भाग लेकर वे भी शीघ्र ही राम-नाम की दिव्यता को अनुभव कर पाएंगे।


कार्यक्रम के अंत में मां पूनम जी ने आभार प्रदर्शन किया और यह जानकारी दी कि ओशो का समस्त साहित्य निःशुल्क व्हाट्सऐप लिंक के माध्यम से उपलब्ध है, जिसे प्राप्त करने के लिए 70273 27372 पर एक लिखित संदेश भेजा जा सकता है।

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Author: telegramsamvad